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“सांचीपुरम पुलिस लाइन क्षेत्र में हादसा—रस्सी और लोहे की रॉड से निकाला गया सांड”

“इंसानियत की मिसाल: कुएं में डूब रहे सांड को लोगों और पुलिस ने मिलकर बचाया”

आनंद गुप्ता जिला संवाददाता

सांचीपुरम कॉलोनी में कुएं में गिरा सांड, स्थानीय लोगों व पुलिस कर्मियों के साहसिक प्रयास से बची जान

सांचीपुरम कॉलोनी, पुलिस लाइन स्थित बचपन स्कूल के सामने एक बड़ा हादसा होते-होते टल गया। यहाँ आयोजित श्रीमद भागवत कथा स्थल से कुछ ही दूरी पर दो सांड आपस में भिड़ गए। आपसी लड़ाई के बीच एक सांड पास में बने पुराने व जर्जर कुएं में जा गिरा। कुएं में पानी और कचरे के बीच सांड पूरी तरह डूब रहा था, केवल उसका मुंह ही ऊपर था जिससे वह सांस ले पा रहा था।

घटना की जानकारी सबसे पहले माइकल सर द्वारा दी गई। उसी समय लक्ष्मी कांत जडेजा व उनकी पत्नी श्रीमती सरोज जडेजा ड्यूटी के लिए निकल रहे थे। उन्होंने तुरंत ही स्थिति को गंभीर समझा और मदद के लिए कमलेश पटेल को आवाज दी। शुरू में ऐसा लगा कि सांड थोड़ा-बहुत गड्ढे में फंसा होगा और आसानी से निकल जाएगा, लेकिन जब पास जाकर देखा तो सांड पूरी तरह डूब चुका था और केवल सांस ले रहा था।

तुरंत गाड़ी रोककर जडेजा जी दौड़कर घर से मोटा रस्सा लेकर आए। उसी बीच कमलेश पटेल, इंदुबाला पाटले, कुमारी सत्या और श्रीशम भी मौके पर पहुँच गए। सभी ने मिलकर एक लंबी लोहे की रॉड की मदद से सांड को थोड़ा ऊपर उठाने का प्रयास किया। जडेजा जी ने सांड के दोनों सींगों में रस्सी बांधा और पूरी ताकत से खींचा। कुछ ही देर में सांड का सिर बाहर आने लगा जिससे सबको उम्मीद जगी कि अब उसे बचाया जा सकता है।

थोड़ी ही देर में पुलिस लाइन से कुछ जवान भी मौके पर पहुँच गए। वे अतिरिक्त लोहे की रॉड लेकर आए। सभी ने मिलकर रस्सी से खींचा और लोहे की रॉड से सांड को ऊपर उठाया। लेकिन सांड का पैर कुएं में जमे घास और कचरे में फंस गया था, जिससे वह भी ताकत नहीं लगा पा रहा था। फिर पुलिस जवानों ने रॉड से घास और कचरे को हटाया। जब रास्ता साफ हुआ तो सभी ने एकजुट होकर जोर लगाया और आखिरकार सांड को कुएं से बाहर निकाल लिया।

जैसे ही सांड बाहर निकला, उसकी आंखों और कानों को ढक दिया गया तथा सिर पर पानी डालकर उसे राहत दी गई। कुछ ही देर में वह सुरक्षित खड़ा हो गया और चलने लगा। उपस्थित लोगों ने राहत की सांस ली। सबका मानना था कि यदि रस्सी लाने में पाँच मिनट भी देर होती तो शायद सांड को बचाना संभव न होता।

यह हादसा केवल इंसानियत और सामूहिक सहयोग की वजह से टल पाया। स्थानीय लोगों और पुलिस कर्मियों ने मिलकर जिस तरह से बेजुबान सांड की जान बचाई, वह वाकई अनुकरणीय और प्रेरणादायक है।

हालांकि यह घटना एक गंभीर समस्या की ओर भी इशारा करती है। यह कुआं लंबे समय से जर्जर अवस्था में है और इसमें पहले भी दुर्घटनाएं घट चुकी हैं। शाम होते ही इस क्षेत्र में कई गाय-बैल इकट्ठा हो जाते हैं, जिससे ऐसी घटनाओं की संभावना बनी रहती है। नागरिकों का कहना है कि प्रशासन को तत्काल इस कुएं को ढकने या पाटने की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे भविष्य में कोई भी गाय, बैल या अन्य बेजुबान प्राणी इस हादसे का शिकार न हो।

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